Tuesday, September 22, 2009

दक्षिण पूर्व एशिया की ब्लोगिंग खतरे में

कल्पना कीजिये आपने सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ एक जोरदार लेख लिखा, और पोस्ट कर दिया.
आप बड़े खुश हो रहे होंगे, अपनी स्वतंत्र विचारधारा और सोच पर...... थोडी देर बाद आपके घर पुलिस पहुँच जाती है, और आप जेल में डाल दिए जाते हैं ।
आपकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन ली जाती है।

जी हाँ, "दी वाल स्ट्रीट जर्नल" समाचार पत्र के अनुसार नेट पर पहरे बिठाये जाने लगे हैं..और दक्षिण पूर्वी एशिया में इसकी शुरुआत हो चुकी है।

थाईलैंड वियतनाम , मलेशिया आदि देशों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में है.
ब्लोगर्स को धमकियाँ दी जा रही है., उन्हें जेलों में डाला जा रहा है,...

मलेशिया में औपनिवेशक काल के आन्तरिक सुरक्षा कानून को लागू कर दिया है, जिसके कारण किसी भी ब्लोगर को
बिना किसी मुकद्दमे के दो साल तक जेल में रखा जा सकता है ...
यही हाल थाईलैंड का है. वहां 'कंप्यूटर अपराध कानून' लागू किया है, ब्लोगर्स और शाही परिवार के विरुद्ध बोलने वालों की धरपकड़ जारी है. यह हवा वियतनाम और चीन में भी फैल रही है...

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थक निराश है. उन्होंने सोचा था कि दक्षिण पूर्व एशिया भी विकसित देशों जैसा उदाहरण पेश करेगा. लेकिन अब उन्हें चिंता है कि यह हवा अन्य देशों के वातावरण को विषाक्त न कर दे...

जहाँ तक भारत का सम्बन्ध है, यहाँ भी तालिवानी मानसिकता के लोग कम नहीं है. और इस मानसिकता को भुनाने वाले नेता भी अपने विकराल रूप में जीवित है।

फिल्मों पर सेंसर ऐसी ही मानसिकता का एक छोटा सा उदाहरण है. यहाँ कई बार पत्रकारों की लेखनी पर लगाम कसने की असफल कौशिश की गई।

सलमान रुश्दी की 'सैटेनिक वर्सेस' किताब पर सबसे पहले भारत में ही प्रतिबन्ध लगाया गया था. आश्चर्य की बात यह है, कि उस वक्त पाकिस्तान में इस पुस्तक पर प्रतिबंध नहीं था, आयतुल्ला खुमैनी के फतवे का असर भारत में सर्वाधिक था....

जसबंत सिंह की पुस्तक पर प्रतिबंध तालिबानी मानसिकता का एक अन्य उदाहरण है. भारत में धार्मिक लोगों की भावनाएं इतनी नाजुक हैं, कि सत्य के एक छोटे से कंकर से चकनाचूर हो जाती हैं. किसी सत्य को बयान करने वाली पेंटिंग, उपन्यास या कोई अन्य कृति पर हुडदंगिये बेशर्मी की हद तक चले जाते हैं।

हुडदंगियों और सरकार की गलत नीतियों के कारण हम तसलीमा नसरीन जैसी आतंकवाद के खिलाफ लड़ने वाली लेखिका को अपने विशाल ह्रदय हिंदुस्तान में थोडी सी जगह नहीं दे पाए....

भला हो उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में बैठे परम सम्मानीय न्यायधीशों का जिनके कारण इस देश का पूर्ण तालिवानी करण नहीं हो पाया ....

हालाँकि उन ब्लोगर्स को चिंता करने की जरूरत नहीं है, जो कि सॉफ्ट ब्लोगिंग को पसंद करते हैं और नितांत व्यक्तिगत हैं. लेकिन सामाजिक बदलाव और राजनितिक और धार्मिक नेतागिरी के खिलाफ बोलने वाले ब्लोगर्स को एक जुट हो कर रहना होगा...

आपका क्या विचार है? क्या भारत में कभी ये नौबत आ सकती है. ? उस स्थिति में हमें क्या करना होगा? पूरा समाचार जानने के लिए
यहाँ क्लिक करें

5 comments:

Anonymous said...

इंटरनेट पर प्रतिबन्ध, हा, हा, हा
किसी देश में बैठकर अन्य देश से ब्लाग पोस्ट किये जायेंगे तो क्या कर लोगे?

सटनिक वर्सेज इन्टरनेट पर डाउनलोड के लिये उपलब्ध है. प्रतिबन्ध लगाने वाले भाड़ में जायें. आपको चाहिये तो गूगले में सर्च करके देखिये, सैंकड़ो जगह मिल जायेंगे.

रामकुमार अंकुश said...

आदरणीय बंधू
जिन लोगों ने इन्टरनेट की शुरुआत की थी ये चिंता उनकी ही तरफ से है,
मैंने तो उस ओर इशारा भर किया है.

Unknown said...

सरकार कहें या तानाशाह, जो भी हैं इन देशों को चलने वाले, कर चुके है तैयारी राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर ब्लोगर्स को ब्लाक करने की ....
वियतनाम
थाईलैंड
मलेशिया
म्यांमार
चाइना
क्यूबा
साउदी अरेबिया
यूनाइटेड अरब एमिरात
बहरैन
इरान
सीरिया
ट्यूनीशिया
............................ अगला देश शायद भारत हो, अगर हम नहीं जागे तो.
ब्लोगर्स के हित में ब्लोगर्स को जगाने की आपकी कोशिश में आपके साथ.........अनुराग

रूपम said...

आप का लेख वहुत ज्वलनशील स्तिथि को इंगित कर रहा है,जरूरी है हमें सतर्क और एकजुट हो जाने की जिससे ऐसी परिस्तिथि आने से पूर्व ही हम लड़ने तैयार हो सकें

Sanjay Grover said...

Aapne achchhi pahal ki hai.