न उम्र की सीमा हो न जन्म का हो बंधन
जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन
यह गीत एक ज़माने में सबसे अधिक सुना गया था
जगजीत सिंह की रेशमी आवाज ने और इस गीत में लिखी पंक्तियों ने लोगों का दिल जीत लिया. यह गीत आज भी कर्णप्रिय है, और निश्चित रूप से कल भी रहेगा.
इसमें लिखी पंक्तियों को सुनकर लोगों का मनमयूर नाच उठता है. क्या बात लिखी है "न उम्र की सीमा हो न जन्म का हो बंधन" वाकई में मन प्रेम करने को मचल जाता है...
किसी प्रसिद्द कवि ने कहा है कि 'हिंदुस्तान में प्यार के मामले में सिर्फ थ्योरी चलती है. हम इस गीत में वर्णित पंक्तियों को भी थ्योरी के रूप में लेते है. और झूम उठते है...
लेकिन असल जिन्दगी में जब कोई प्रेमी ऐसा कदम उठा लेता है, तो हंगामा खडा हो जाता है...
सामाजिक मान मर्यादाएं, इज्जत प्रतिष्ठा दिखाई देने लगती है..
कितने दोगले लोग हैं हम....?
ऐसा ही एक साहसी कदम उठाया था कुछ वर्ष पूर्व पटना में रहने वाले हिंदी के प्रोफेसर श्री मटुक नाथ चौधरी और उनकी शिष्या प्रेमिका जूली ने...
पहले प्रेम हुआ, फिर शादी करली , समाज में भूचाल आ गया. प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रोनिक मीडिया, समाज सेवी संस्थाओं ने अपना झंडा और डंडा बुलंद करने के लिए उनका सामाजिक बहिष्कार किया. मटुक नाथ को प्रेम करने के जुर्म में विश्वविद्यालय ने नौकरी से निकाल दिया, उन्हें पत्थर मारे गए, उनके चेहरे पर कालिख पोती गई, वह समाज के नैतिक बदमाशों द्वारा रातोंरात खलनायक बना दिए गए ...
लेकिन मटुक नाथ और उनकी शिष्या प्रेमिका अपने इरादों पर अडिग रहे और आज खुशहाल जीवन जी रहे हैं..
समाज के मानदंडों के आधार पर जीने वाले लोगों को यह नागवार गुजर सकता है कि अपनी उम्र से लगभग आधी, अपनी शिष्या के साथ कोई प्रेम करे! लेकिन एक स्वतंत्र व्यक्तित्व को इन बातों से कोई प्रयोजन नहीं होता है..
बहरहाल आज इस साहसी जोड़े ने ब्लॉग कि दुनिया में
जूलीमटुक के नाम से कदम रखा है उनका लेखन भी एकदम जीवंत है... में समझता हूँ ब्लॉग दुनिया इनका गर्मजोशी से स्वागत करेगी....
6 comments:
ये ब्लॉग कल देखा था। कन्टेंट के मामले अभी कुछ भी बोलना शायद जल्दी हो। देखते है दोनों समाज में कौन सा बदलाव चाहते हैं।
सच कहा यहाँ सब कुछ लाठी के दम पर ही चलता है ,
क्योंकि है कहाँ उनके पास संवेदनायें जो बन्धनों की जंजीरों में जकडे हुए है
एक बार उम्मीद कर लो सूखे पेड़ों से पर कहाँ उनसे जो निष्ठुरता पकडे हुए है .
कानून जेल जंगल व समाज तीनों के ही अपने अपने होते हैं...नहीं मानने पर अराजकता होती है जिसके चलने सभी के अधिकार ख़तरे में आ जाते हैं
ीऐसी ही एक कहानी का दूसरा रूप देखना हो तो कल मेरी कहानी मे जरूर देखें वो एक सच्ची कहानी है । अपने से आधी उम्र की लडकी से विवाह लगता नहीं कि अधिक देर चल पायेगा । फिर आज ही किसी ब्लाग पर शायद इस से सम्बन्धित पोस्ट देखी है जो कहानी मे अभी भी कुछ और है बता रही है शुभकामनायें
राम कुमार अन्कुशजी
समझदारी से पूर्ण टिप्पणी देखकर गदगद हुए . आपको और रुपमजी को पाना हमारे ब्लॉग की उपलब्धि है. हम आपको पढ़ा करेंगे और समय-समय पर टिप्पणी भी दिया करेंगे . प्रणाम स्वीकारें .
09334149605, 09304930385
अलोइस ने जब क्लारा से शादी की थी तब अलोइस ४८ और क्लारा २४ की थी और हिटलर के जन्म पर पिता अलोइस ५२ पार कर चुके थे
भारत में भी ऐसे कई जोड़े है, बटुक-जूली पहले उदाहरण नहीं है
रही बात गुरु-शिष्या के विवाह की...... तो
कबीर को कहते सुना है
जब गुरु दिल में देखिया...दामन को कछु नाहि
गुरु शब्द की अपनी एक गहराई है, गुरु बना है गुर(गूढ़) से
गुरु सिर्फ पढ़ा हुआ नहीं पढाते , वो उस परम सत्ता के छुपे रहस्यों को उजागर करते है जिसे जानने की शिष्य के मन में जिज्ञासा या अभीप्सा होती है (कृपया तथाकथित और स्वघोषित धर्म गुरुओ से बचियेगा )
टीचर,प्रोफ़ेसर,इंजीनीअर,डॉक्टर ये सभी अपने अपने क्षेत्र में अपनी सेवाएं प्रदान करते है
मटुक जी प्रोफ़ेसर है और जूली स्टुडेंट, कब तक, जब तक वो कॉलेज में है
उसके बाद वो सामान्य व्यक्ति हैं बिलकुल अलोइस और क्लारा की तरह, हमारी तरह
अपने निजी जीवन में वो किसे प्रेम करते है और किस से विवाह करते है ये उनका निजी मामला है
कुछ फुरसतिया और मूढ़ लोगो और ऐसे ही लोगो से संचालित हो रहे मीडिया की वजह से इस प्यारे जोड़े को जो तकलीफ हुई उससे बहुत ठेस पहुंची पर इस सब से इस नवदम्पति को साहस मिला और तारीक-ए-हिंदुस्तान को एक साहसी प्रेमी युगल .
मटुक-जूली के लिए bhadas4media.com का सहयोग सराहनीय है
साहसी युगल के लिए आपकी सोच पसंद आई
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