आज से दो माह पहले ब्लॉग सफर शुरू किया था यह सफर कहाँ तक पहुंचेगा यह तो भविष्य के आगोश में है, लेकिन इसका प्रतिफल मेरे लिए सुखद रहा .सबसे पहले में रचना जी के प्रति आभार व्यक्त करना चाहूँगा जिन्होंने पता नहीं कहाँ से खोज कर मेरा ब्लॉग पढ़ लिया और तत्काल टिप्पणी से भी मेरा उत्साहवर्धन किया जबकि मैं उस समय किसी भी एग्रीगेटर से नहीं जुड़ा था. हालाँकि अब उनकी प्रोफाइल मौजूद नहीं है लेकिन मैं उन्हें नारी ब्लॉग के माध्यम से पढता रहता हूँ.
ब्लोगवाणी और चिटठा जगत से जुड़ने के बाद मेरे दुसरे आलेख पर जिन मित्रों की टिप्पणियाँ आईं वे ब्लॉग दुनिया के जाने माने नाम हैं.. बी. एस. पाबला. संदीप वेदरत्न शुक्ल, चन्दन कुमार झा, गार्गी गुप्ता, अमित के सागर... मैं उनका ह्रदय से आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया.
मेरे तीसरे आलेख को सुशील कुमार छौक्कर, वीनस केशरी, हरकीरत हकीर, और सुमन जी ने अपने सुन्दर शब्दों से सराहा.
मेरे चौथे आलेख पर हिंदी ब्लॉग एवं टिप्पणियों के शहंशाह उड़न तश्तरी वाले समीर लाल जी उपस्थित हुए. उन्हें अपने ब्लॉग पर पाकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई.. साथ में उपस्थित हुए अनिल कान्त , रूपम, राजेश कुमार और अनुराग
अपने पांचवे आलेख में मैं परिचित हुआ ब्लॉग जगत की कुछ अनूठी हस्तियों से. मेरे इस आलोचनात्मक लेख पर उनकी सहमती और असहमति दोनों ही प्रेम पूर्ण ढंग से अभिव्यक्त हुईं. पी. सी. गोदियाल, दिगंबर नासवा, अविनाश वाचस्पति, दीप्ती, अनूप शुक्ल रूपम और अनुराग का बहुत बहुत आभार....
मेरा अगला आलेख मटुकजूली ब्लॉग पर आधारित था. इस लेख पर आदरणीय निर्मला कपिला जी और कार्टूनिस्ट काजल कुमार की असहमति थी. विचारों से सहमती असहमति जिन्दगी का एक हिस्सा है दोनों इस ब्लॉग पर पधारे यही मेरे लिए बहुत है. इसके साथ ही दीप्ती, मटुकजूली, और अनुराग ने अपने विचारों से मुझे अवगत कराया.. बहुत बहुत धन्यवाद...
"आस्तिक और नास्तिक एक ही थैली के चट्टे बट्टे" इस आलेख पर मुझे सबसे पहले टिप्पणी मिली आदरणीय दिनेश राय द्विवेदी जी की.. उनको पढ़कर मुझे अपने लेखन की सार्थकता समझ में आई . ब्लॉग दुनिया को द्विवेदी जी से सीखने के लिए बहुत कुछ है उनके आलेख तो मजेदार होते ही हैं उनकी टिप्पणियाँ भी सारगर्भित और प्रेरणा से परिपूर्ण होती हैं. उनके लेखन और व्यक्तित्व पर अलग से ही कुछ लिखा जा सकता है. इसी आलेख पर लवली कुमारी, प्रवीण शाह, संजय ग्रोवर , सुमन और रूपम की टिप्पणियाँ भी प्राप्त हुयीं. लवली कुमारी तो पूरी तरह से वैज्ञानिक हैं, एवं प्रवीण शाह भी वैज्ञानिक विचार धारा का पोषण करते हैं हालाँकि मेरा विचार है कि अध्यात्म और विज्ञानं अलग अलग नहीं हैं. खोज करने के रास्ते अलग हो सकते हैं..
मेरे अगले आलेख पर जिन महानुभावों की टिप्पणियाँ मुझे मिलीं. वे भी ब्लॉग जगत के सम्मानीय नाम हैं. अर्शिया, अरविन्द शुक्ला, संजीव कुमार सिन्हा, आर्जव, सतीश सक्सेना, अरुण राजनाथ/ अरुणकुमार, मनोज भारती, अफलातून, रूपम, की टिप्पणियाँ मेरे लिए प्रेरणादायक रहीं विचारों से ओत प्रोत सुन्दर अभिव्यक्तियों के लिए मेरा आभार स्वीकार करें.
मेरा अगला आलेख जहाँ मेरी पचास टिप्पणियाँ पूरी होती हैं, उनमे शामिल हैं, मेरे मित्र -अफलातून, सची, रूपम, विनय, मुनीश, प्रवीण शाह, मुमुक्ष की रचनाये, रविकुमार, गठरी, इन सभी का बहुत बहुत अभिनन्दन, विश्वाश है कि आगे भी मुझे आपका प्यार इसी तरह से मिलता रहेगा. ..
और अंत में आभारी हूँ मेरे दो अभिन्न मित्रों का, प्रथम अनुराग जो हमेशा मुझे ब्लॉग दुनिया की तरफ ठेलते रहे और रूपम का जिन्होंने मुझसे तकनीकी सहयोग बनाये रखा.
शेष अगली बार....
11 comments:
शायद आपके ब्लाग पर मैने अभी तक अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं की थी .. आज पहले पहले बधाई ही दे देती हूं .. जल्द ही 500 टिप्पणियां भी पूरी हो जाएंगी आपकी .. शुभकामनाएं !!
बहुत बहुत बधाई मित्र, अर्ध शतक के लिये, दिनो दिन शतक लगे यही कामना है, मेरा भी प्रयास रहेगा कि आपके शतको मे मेरा योगदान हो :)
हमने भी आज अपने ब्लाग महाशक्ति पर 2000वीं टिप्पणी पाई है।
"आस्तिक और नास्तिक एक ही थैली के चट्टे बट्टे"hi nice hai
राम कुमार जी,
बधाई।
और यह तो तब है जब आपने "अंकुश" लगा रखा है। नहीं तो....... (:
चिट्ठेकारी में सातत्य का होना महत्वपूर्ण है । आपको बधाई देते वक्त अपने तीन चिट्ठों की कुल ५८१ प्रविष्टियों पर आई २,६७२ टिप्पणियों पर ध्यान गया । आपके विचारों से आकर्षित रहता हूँ । शुभ कामनायें ।
बधाई हो अर्ध्य शतक पूरा करने के लिए . हजारो टिप्पणी हो ...
बहुत बहुत बधाई ...अभी कई शतक लगाने हैं. नियमित लिखिये..अच्छा लिखिये...खूब पढ़िये.. शुभकामनाएँ.
बहुत बहुत बधाई हो।आप टिपण्णियों के शतकवीर बने।
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बहुत बहुत बधाई और आगे भी ढेर सा लिखने की शुभकामनायें।
यहाँ पर यह भी कहूँगा कि आपने भी अपनी उपस्थिति से ब्लॉगजगत को समृद्ध किया है और एक अलग तेवर से परिचित कराया है... लिखते रहिये और इन तेवरों को बचा कर रखिये...
जहां एक ओर सफलता के सोपान चढ़ने वाले शुरूआती पगडंडियों को भूल जाते है वहीँ आप जैसे आत्मीय व्यक्ति एक एक करके उन सभी को याद कर लेते है जो इस सफ़र में हमसफ़र रहे है. मनुष्य की उपलब्धि से कही अधिक महत्वपूर्ण होती है उस स्तर पर मनुष्य की भावदशा ! किताबो के बाहर भी जब आप जैसे लोग मिल जाते है तो ना चाहकर भी सौभाग्य जैसे शब्दों पर भरोसा होने लगता है
अभी अचानक आपकी इस पोस्ट पर नजर पढ़ी ..मुझे वैज्ञानिक जैसी उपमा नवाजने का शुक्रिया ..मैं विज्ञान की साधरण सी छात्र हूँ
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