Sunday, August 2, 2009

कन्यादान योजना एक अदूरदर्शी योजना

मध्यप्रदेश सरकार आजकल कन्यादान योजना चला रही है। प्रथम तो इस योजना के नामकरण पर ही प्रश्नचिन्ह लगना चाहिए .कन्यादान शब्द हिंदू समाज के लिए कलंक से ज्यादा नहीं है। हिंदू धर्म में दान का सर्वाधिक महत्व है जरूरतमंद को दान देना या उसकी मदद करना बुरा नही है। लेकिन हमें यह समझना चाहिए की दान वस्तुओं का होता है। चूंकि समाज में सदियों से स्त्री को भी वस्तु के रूप देखा गया है। इसलिए लोग कन्यादान करते हैं। अब यह कार्य मध्यप्रदेश सरकार ने अपने हाथों में लेलिया है।

अब यहाँ के नेता अधिक से अधिक वयस्क,अवयस्क लड़के,लड़कियों को इकठ्ठा करते हैं। उनकी शादियाँ करवाते हैं। कन्यादान करते हैं और पुण्य कमाते हैं। इसतरह अब मध्यप्रदेश के नेताओं को स्वर्ग मिलना लगभग तय हो गया है।

ये प्रश्न पूछा जाना चाहिए की क्या मध्यप्रदेश सरकार ने गरीब लड़केलड़कियों की शादी करवाने का ठेका ले रखा है? वैसे ही गरीब परिवार दो वक्त की रोटी बड़ी मुश्किल से कमापाता है। एक अन्य सदस्य बढ़ जाने से क्या उनकी गरीबी दूर हो जायेगी ?

यह मूर्खतापूर्ण योजना भविष्य में खतरे की घंटी है। क्योंकि ये विवाहित जोड़े आठ दस माह में दो से तीन होने वाले है। वैसे ही हमारे अनेक राज्य जनसँख्या के बोझ से दबे जारहे हैं। मध्यप्रदेश की कुल जनसँख्या ही थाईलैंड की जनसँख्या के बराबर है। क्या जनसँख्या की वृद्धिदर को देखते हुए इसतरह की योजनायें लाभकारी हैं? नेता वोटबेंक के चक्कर में इसप्रकार की योजनायें लागू करते रहते है इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है। आपके क्या विचार है?

3 comments:

Anonymous said...

हिंदू धर्म में दान का सर्वाधिक महत्व है जरूरतमंद को दान देना या उसकी मदद करना बुरा नही है। लेकिन हमें यह समझना चाहिए की दान वस्तुओं का होता है। चूंकि समाज में सदियों से स्त्री को भी वस्तु के रूप देखा गया है। इसलिए लोग कन्यादान करते हैं।


aap kee baat sae sehmat hun kanyaa daan ki reeti bilkul khatam honi chahiyae

Unknown said...

is yojna ke anchue aur syaah pahlu ko sare-aam beparda karne ki aapki himmat aur himakat ki daad deta hu. aapka lekh gaagar me saagar he.
naye lekh ki prateeksha rahegi.

Unknown said...

Aapki Baat Sahi hai, Pahle to kanya ko daan ki bastu samjhna hi nahi chaihey, Jis din se is des main kanya ko bastu ke roop mein na lekar purush ke barbar hi ijjat ki drishti se dekha jayega to ho sakta hai ki kanya khud hi daan ki bastu naa samajhate hue apne faisle khud karegi aur kanya daan ki pratha khatm ho jayegi jaise ki "Rakhi ka swanvar" jisme Rakhi sawant ne apne bar ko chuna na ki bar ne rakhi sawant ko.