हमारा समाज दिनोंदिन प्रगति के साथ-साथ इतना जटिल होता जा रहा है की सरल और निष्कपट जीवन जीना दुर्लभ प्रतीत होने लगा है। वह ख़ुद तो परतंत्र है ही दूसरों को भी इसी राह पर धकेलना चाहता है। नेता जनता पर एक छत्र राज्य चाहता है। गुरु अपने शिष्यों को जकड कर रखता है। कहीं पति अपनी पत्नी पर शासन करता है तो कहीं पत्नियाँ पति पर रौब झाड़ती हैं। कहीं पत्नी परेशान है तो कहीं पति प्रताडित है। कहीं पिता अपने पुत्रों पर शिकंजा कसे बैठा है, तो कहीं घर की मम्मियां अपनी लड़कियों को संस्कृति और नैतिकता का पाठ पढ़ा कर और प्रेम से वंचित कर चूला चौका सँभालने और गृहकार्य में दक्ष विवाह योग्य कन्या रुपी प्रोडक्ट तैयार करने में जुटी हैं। लगता है हर व्यक्ति ने एक दूसरे की स्वतंत्रता का अपहरण करने का जिम्मा ले रखा है। संयुक्त परिवारों में किसी बड़े बुजुर्ग का सिक्का चलता है। और परिवार के अन्य सदस्यों की जुर्रत भी नहीं होती की वह उनकी किसी । ग़लत बात की अवहेलना कर सके। अवहेलना करना उनकी प्रतिष्ठा और मान सम्मान का सवाल वन जाता है।
शासित होना कोई नहीं चाहेगा जो पंख उड़ान भरने के लिए हैं उन्हें कटवाना कौन चाहेगा। अपनी स्वतंत्रता सभी को प्रिय होती है। एक प्रबुद्ध व्यक्ति किसी पर भी शासन नहीं करता है। इसके इतर शासन करने वाला व्यक्ति यह अपेक्षा करेगा की उसके आदेश का पालन किया जाए। अब यदि कोई अन्य उसके आदेश की अवहेलना करता है तो क्या होगा ? निस्संदेह वह क्रुद्ध हो जाएगा, हिंसक भी हो सकता है। क्योंकि दूसरों पर आधिपत्य जमाने वाला व्यक्ति कभी सकारात्मक नहीं होता है। किसी की ना सुनना उसे कभी नहीं सुहाता है।
प्रश्न उठता है यह आधिपत्य क्यों? यह शासन क्यों? क्या दो दिन की जिन्दगी में हम बिना दूसरों पर अधिकार किये जियो और जीनो दो की भावना से अपने आपको स्पंदित नहीं रख सकते?दूसरों पर लगाम लगाकर हम ख़ुद को आजाद कैसे रख सकते हैं? लगाम एक ऐसी हथकडी है जहाँ न हथकडी पहनने वाला स्वतंत्र है और न हथकडी पहनाने वाला। लगाम ढीली छोडिये। प्रेम, स्नेह , करुना आदि मानवीय गुणों को आत्मसात कीजिये आप भी खुश रहेंगे ,आपका परिवार भी , आपके मित्र भी।
2 comments:
swatantrata divas par aapka blog hamari SARKAAR ki samajh me aa jaye in shubhekshao ke saath..!!
Ye log aise nahi maanne bale, inko to seekh ishwar awtar lekar hi de sakta hai, unke upoor sashan karke, tab tak ki ye log pyaar ki bhasa na sikh jayen tab tak ishwar inko pyaar ki bhasa apne tarike se sikhaye to hi is sammaj main badlab aa sakta hai, geeta main shri krishna ne kaha bhi hai ki "jab jab prathvi par atyachar badega main prakat hounga", ishi ki jaroorat hai awam intezar hai.........
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